Wednesday, December 8, 2010

रक्त ही मनुज का


"रक्त ही मनुज  का"

मनुष्य रूप 
कर्म से तो भेड़िये
मनन करो 

धर्मांध कहे
स्वार्थ ही सर्वोपरि 
सुझावे कौन 

अल्ला ईश्वर
 बस है शक्ति एक 
क्यों बांटो तुम 

बूझो मनुष्य
तो पाओ सुख चैन
हो धर्म यही 

लगता सस्ता
रक्त ही मनुज का
किसे फिकर

- कुसुम ठाकुर -