Monday, February 28, 2011

कर्म ही छोटा


"कर्म ही छोटा"

घोटाले बने
पर्याय नेताओं के
क्षुब्ध जनता

न छोड़े कोई 
ज्यों मौक़ा कभी मिले 
वर्ना सन्यासी  

है लूट मची 
जनता भी है अंधी 
न खोले आँख 

देखा किसने 
फल भी क्या मिलता 
न देखा जन्म

आह लिया है 
ख़ुशी की परिभाषा 
न जाने वह 

है दोषी कौन 
जब शीर्ष ही खोटा 
बिका ईमान  

है नाम बड़ा 
कैसे शान बढाए 
कर्म ही छोटा 



-कुसुम ठाकुर-