"कर्म ही छोटा"
घोटाले बने
पर्याय नेताओं के
क्षुब्ध जनता
पर्याय नेताओं के
क्षुब्ध जनता
न छोड़े कोई
ज्यों मौक़ा कभी मिले
वर्ना सन्यासी
है लूट मची
जनता भी है अंधी
न खोले आँख
देखा किसने
फल भी क्या मिलता
न देखा जन्म
आह लिया है
ख़ुशी की परिभाषा
न जाने वह
है दोषी कौन
जब शीर्ष ही खोटा
बिका ईमान
है नाम बड़ा
कैसे शान बढाए
कर्म ही छोटा
-कुसुम ठाकुर-
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