Wednesday, December 8, 2010

रक्त ही मनुज का


"रक्त ही मनुज  का"

मनुष्य रूप 
कर्म से तो भेड़िये
मनन करो 

धर्मांध कहे
स्वार्थ ही सर्वोपरि 
सुझावे कौन 

अल्ला ईश्वर
 बस है शक्ति एक 
क्यों बांटो तुम 

बूझो मनुष्य
तो पाओ सुख चैन
हो धर्म यही 

लगता सस्ता
रक्त ही मनुज का
किसे फिकर

- कुसुम ठाकुर -

3 comments:

  1. लगता सस्ता
    रक्त ही मनुज का
    किसे फिकर

    विचार प्रेरक हाईकू देने के लिए धन्यवाद् | सुन्दर

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  2. मनुष्य रूप
    कर्म से तो भेड़िये
    मनन करो

    चिंतन को कुरेदने वाली इस अभिव्यक्ति पर आपको विशेष बधाई!
    प्रसन्नता हुई कि आप समाजोपयोगी क्रिया-कलापों में भी अपना समय दे रही
    हैं...समर्पित हैं! प्रभु आपको दीर्घजीवी बनाएँ...आमीन!

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  3. Ati sunder. Dil ne, Dil se, Dil ke liye..........Likhti raho hum padhte rahenge..........hamesha.....

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